प्यार की परिभाषा
संजय वर्मा 'दृष्टि’प्यार का पवन
चलता तो प्यार
उड़ता
जैसे पतंग उड़ती।
चलता जब पवन
प्रेयसी के मकान
के ऊपर चक्कर
लगाती रंग बिरंगी पतंगों में
निहारती प्रेम के रंग में रँगी
पतंग को।
उड़ती हुई पतंगों में
ये ख़ास पतंग दे जाती
प्रेम संदेश।
पतंग के रूप में
प्यार का संदेश
बार बार मँडरा कर
आकाश में अपना
वर्चस्व दिखाती।
पतंग ये
बतलाती मैंने
पा लिया प्यार
क्योंकि कोई निहार रहा
छत से मुझे।
जब कटती तब
समझ आती
प्यार की परिभाषा
और ये भी समझ आता
प्यार करना और
पतंग उड़ाने में
आभास का अंतर
जो बँधा तो है
उम्मीदों और आस की
डोरी से
जो पल भर में
टूट जाता।
टूटने, छूटने से
विरह की वेदना
के मनोभाव
लग जाते सीधे दिल को।
प्रेम के ढाई आखर को
फिर से सँजोने लग कर
निहारता अब
सूने आकाश को
बिन पतंग।
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