पलायन का जन्म
आलोक कौशिकहमने ग़रीब बन कर जन्म नहीं लिया था
हाँ, अमीरी हमें विरासत में नहीं मिली थी
हमारी क्षमताओं को परखने से पूर्व ही
हमें ग़रीब घोषित कर दिया गया
किंतु फिर भी
हमने इसे स्वीकार नहीं किया
कुदाल उठाई, धरती का सीना चीरा और बीज बो दिया
हमारी मेहनत रंग लाई, फ़सल लहलहा उठी
प्रसन्नता नेत्रों के रास्ते हृदय में
पहुँचने ही वाली थी कि अचानक
रात के अँधेरे में, भीषण बाढ़ आई
और हमारे भविष्य, भूत और वर्तमान को
अपने साथ बहा ले गई
हमारे साथ रह गया
केवल हमारा हौंसला
इसे साथ लेकर चल पड़े हम
अपनी हड्डियों से
भारत की अट्टालिकाओं का
निर्माण करने
शायद बाबूजी सही कहते थे
मज़दूर के घर
ग़रीबी के गर्भ में
पलायन ही पलता है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अच्छा इंसान
- आलिंगन (आलोक कौशिक)
- उन्हें भी दिखाओ
- एक दिन मंज़िल मिल जाएगी
- कवि हो तुम
- कारगिल विजय
- किसान की व्यथा
- कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
- क्योंकि मैं सत्य हूँ
- गणतंत्र
- जय श्री राम
- जीवन (आलोक कौशिक)
- तीन लोग
- नन्हे राजकुमार
- निर्धन
- पलायन का जन्म
- पिता के अश्रु
- प्रकृति
- प्रेम
- प्रेम दिवस
- प्रेम परिधि
- बहन
- बारिश (आलोक कौशिक)
- भारत में
- मेरे जाने के बाद
- युवा
- श्री कृष्ण
- सरस्वती वंदना
- सावन (आलोक कौशिक)
- साहित्य के संकट
- हनुमान स्तुति
- हे हंसवाहिनी माँ
- हास्य-व्यंग्य कविता
- बाल साहित्य कविता
- लघुकथा
- कहानी
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-