पलायन का जन्म

01-04-2020

पलायन का जन्म

आलोक कौशिक (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

हमने ग़रीब बन कर जन्म नहीं लिया था 
हाँ, अमीरी हमें विरासत में नहीं मिली थी 
हमारी क्षमताओं को परखने से पूर्व ही 
हमें ग़रीब घोषित कर दिया गया 


किंतु फिर भी 
हमने इसे स्वीकार नहीं किया 
कुदाल उठाई, धरती का सीना चीरा और बीज बो दिया 
हमारी मेहनत रंग लाई, फ़सल लहलहा उठी 


प्रसन्नता नेत्रों के रास्ते हृदय में 
पहुँचने ही वाली थी कि अचानक 
रात के अँधेरे में, भीषण बाढ़ आई 
और हमारे भविष्य, भूत और वर्तमान को 
अपने साथ बहा ले गई 


हमारे साथ रह गया 
केवल हमारा हौंसला 
इसे साथ लेकर चल पड़े हम 
अपनी हड्डियों से 
भारत की अट्टालिकाओं का 
निर्माण करने 


शायद बाबूजी सही कहते थे 
मज़दूर के घर 
ग़रीबी के गर्भ में 
पलायन ही पलता है। 

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