नन्ही चींटी
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’कभी न थकती चलती रहती 
नन्ही चींटी।
गरमी से घबराना कैसा
सरदी में रुक जाना कैसा
भूख-प्यास सब कुछ है सहती
नन्हीं चींटी।
सीखो सदा प्रेम से रहना 
हँसकर दुख सुख सारे सहना
‘मेहनत करके जियो’ -कहती 
नन्हीं चींटी।
 
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