बनी तपोभूमि वसुधा
है मरुथल कुंड हवन
पूर्ण विधि विधानों से
करता है जेष्ठ हवन
मंत्रों से अग्नि प्रज्वलित
लू - लपटें उठीं गगन
आहुति देता बार बार
समिधा जीवों के तन
निर्जल उपवास किया धारण
सम्मिलित है मरु कानन
कमज़ोर देह, मूँदे लोचन
हैं सूख रहे आनन
बिना किसी व्यवधान के
जब हुआ हवन सम्पन्न
ख़ुशबू जा पहुँची स्वर्ग में
बैठे चिंतित सुर गण
चढ़कर इन्द्र घन यान में
आ पहुँच गया मरु वन
तपसी जन पर प्रसन्न होकर
बरसाए मेघ सुमन