चाँद-चकोर
संजय वर्मा 'दृष्टि’आकाश की आँखों में
रातों का सूरमा
सितारों की गलियों में
गुज़रते रहे मेहमां
मचलते हुए चाँद को
कैसे दिखाए कोई शमा
छुप छुपकर जब
चाँद हो रहा है जवां
चकोर को डर
भोर न हो जाए
चमकता मेरा चाँद
कहीं खो न जाए
मन बेचैन आँखें
पथरा सी जाएँगी
विरह मन की राहें
रातें निहारती जाएँगी
चकोर का यूँ बुदबुदाना
चाँद को यूँ सुनाना
ईद और पूनम पे
बादलों में मत छुप जाना
याद रखना बस
इतना न तरसाना
मेरे चाँद तुम ख़ुद
चले आना
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