बस्तों की फरियाद‌

20-02-2019

बस्तों की फरियाद‌

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
 

पात्र :
महाराजा, महामंत्री, पाँच बस्ते, एक बालक, दो सिपाही

मंच पर परदे के पीछे से आवाज़ आ रही है।

[आजकल कैसी-कैसी शिकायतें आ रही हैं महामंत्री, अब तो बस्ते भी शिकायत करने लगे। ज़मीन-जायदाद की शिकायतें तो आती हैं, मारपीट और स्त्री- पुरुषों के झगड़ों की शिकायतें आना भी समझ मे आता है पर पर ये बस्ते! आश्चर्य है इन्हें क्या कष्ट‌ हो गया, समझ से परे है महामंत्री।
महाराज कोई विशेष बात लगती है। राजमहल को हज़ारों बस्तों ने घेर रखा है, नारेबाजी हो रही है, "हम पर न ये जुल्म करो- इंसाफ़ करो इंसाफ़ करो।"
सारे बस्ते आपसे मिलना चाहते थे, वह तो मैंने केवल पाँच प्रतिनिधि बस्तों को ही दरवार में आने की इजाज़त दी है।
चलो चलकर देखते हैं।]

[राजसी वेश भूषा में महाराज और महामंत्री मंच पर प्रवेश करते हैं। मंच पर उपस्थित दो सैनिक सिर झुकाकर अभिवादन करते हैं महाराज आसन पर बैठ जाते हैं और बस्तों की तरफ एक सरसरी नज़र डालते हैं। पाँच छोटे बड़े बच्चे बस्ता बने हुए हैं, छाती पर छोटे से बैनर बँधे हैं जिन पर लिखा है फर्स्ट स्टेंडर्ड, फोर्थ स्टेंडर्ड, सेवंथ स्टेंडर्ड, टेंथ स्टेंडर्ड और ट्वेल्थ स्टेंडर्ड। पाँचों बच्चों के कमर बेल्टों में किताबें कापियाँ बँधी हैं।]

महाराज इतने छोटे बस्ते इन्हें क्या कष्ट‌ हो सकता है महामंत्री? एक-एक कर इनको हमारे समक्ष पेश किया जाए।
 

(महामंत्री एक बस्ते की तरफ इशारा करता है)

एक छोटा बस्ता महाराज की जय हो, दुहाई हो महाराज हम निरीहों की पुकार सुनी जाए, हम बहुत ही दुखी हैं महाराज।
महाराज यह कौन सा बस्ता है, यह कैसा जोकर बना हुआ है, इसकी कमर किताबों से ढकी है यह क्या तमाशा है।
महामंत्री यह फर्स्ट स्टेंडर्ड का बस्ता है।
महाराज यह फर्स्ट स्टेंडर्ड क्या होता है महामंत्री?
महामंत्री फर्स्ट स्टेंडर्ड का मतलब प्रथम कक्षा है महाराज, पहली क्लास। यह पहली क्लास का बस्ता है ...
महाराज हाँ, हाँ हम जानते है महामंत्री, शिक्षा ग्रहण के पायदान की प्रथम सीढ़ी होती है पहली कक्षा। हम भी जब पहली बार शाला गये थे तो हमारे पिता श्री ने प्रथम कक्षा में ही हमारा नाम लिखाया था। बड़ा रोमांच होता है इस दिन। आख़िर बच्चा पहली बार शाला का मुख देखता है।
महामंत्री क्षमा करें महाराज अब वैसा समय नहीं रहा, पहली जमात तक आते-आते तो तीन जमातें उत्तीर्ण कर ली जाती हैं।
महाराज कैसी बेतुकी बातें करते हो महामंत्री, पहली कक्षा में आते-आते बच्चे तीन कक्षाएँ पार कर आते हैं, क्या पैदा होते ही बच्चे के कंधे पर बस्ता टाँग दिया जाता है?
महामंत्री हाँ महाराज, नहीं महाऱाज, (हकला जाता है)
महाराज यह क्या हाँ महाराज, नहीं महाराज लगा रखी है। ठीक से बताओ क्या पैदा होते ही बच्चों को शाला भेज दिया जाता है?
महामंत्री दो वर्ष के बच्चे को बचपन प्ले में भर्ती कर देते हैं महाराज।
महाराज यह कौन सा प्ले है? कोई खेल का मैदान है क्या? हमारे ज़माने में तो खेल के मैदान में घुड़सवारी, तलवारबाजी कुश्ती, कबड्डी खो-खो, फ़ुटबाल वग़ैरह होती थी। कहाँ पर है यह बचपन का मैदान?
महामंत्री महाराज यह वैसा वाला प्ले ग्राउंड नहीं है। यह तो बच्चों की शाला जाने में दिलचस्पी बढ़े और रुचि जागे इसके लिए एक पाठशाला ही है महाराज यहाँ पढ़ाई के साथ खेल-खिलौनों की सुविधा होती है।
महाराज परन्तु यह कार्य तो घर में भी हो सकता है, माता-पिता, दादा-दादी के संरक्षण में सीखेंगे तो उन्हें स्नेह-दुलार भी मिलेगा, बच्चे कुछ अधिक ही ग्रहण करेंगे।
महामंत्री  आपका कथन सौ प्रतिशत सत्य है महाराज किंतु आजकल दादी-दादा बच्चों के साथ रह ही कहाँ पाते हैं। और माता-पिता को तो इतना वक़्त ही नहीं है की बच्चों के साथ खेल सकें, उन्हें पढ़ा सकें।
महाराज ऐसा क्या हो गया कि दादा-दादी बच्चों के साथ नही रह पाते, माता-पिता के पास समय नहीं है?
महामंत्री  आजकल अधिक से अधिक धन कमाने की चाहत में आदमी मदहोश हुआ जा रहा है, अपना गाँव, कस्बा छोड़कर बड़े शहरों की और पलायन कर रहा है। माता-पिता दोनों किसी सरकारी, गैर सरकारी दफ्तर मैं कार्यरत हैं। बच्चों के दादा- दादी अपने गाँव-कस्बों के ही होकर रह गए हैं। बहुत कम ख़ुशनसीब बच्चों को उनका लाड-दुलार प्राप्त हो पा रहा है। फिर ग्लोबलाइज़ेशन ने तो आदमी को जैसे पैसे उगलने वाली मशीन ही बना दिया है।
महाराज क्या कहा ग्लोबलाइज़ेशन !यह ग्लोबलाइज़ेशन क्या बला है महामंत्री कहाँ से आया है किस देश का है?
महामंत्री ग्लोबलाइज़ेशन का मतलब वैश्वीकरण है महाराज, जब से हमारे देश में इसका पदार्पण हुआ है देश का नक्शा ही बदल गया है महाराज।
महाराज (थोड़ी ऊँची आवाज़े में) महामंत्री हमारे देश में वैश्वीकरण आ गया और हमे ख़बर भी नहीं। हमारे सैनिक क्या कर रहे थे, क्या हमारे सेनापति इससे अनभिज्ञ हैं? ऐसी लापरवाही हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
महामंत्री महाराज क्षमा करें, यह वैश्वीकरण हमारा कोई दुश्मन नहीं है, महाराज यह तो समाज की आर्थिक सुदृढ़ता के लिए अर्थ शास्त्रियों और दुनिया के देशों द्वारा बनाई गई व्यवस्था है जिसमें सारे देश एक दूसरे से आर्थिक तौर पर जुड़ गए है और एक दूसरे से मुक्त व्यापार कर सकते हैं।
महाराज यह कैसी व्यवस्था है जिसमे दो साल के बच्चे को माता की गोद से छीनकर शालाओं में फेक देते हैं। महामंत्री यह भी बताओ की बचपन प्ले के बाद बच्चे और कहाँ-कहाँ पढ़‌ते खेलते हैं?
महामंत्री बचपन प्ले के बाद बच्चे के.जी. वन, के.जी. टू नाम की कक्षा में पढ़ते हैं महाराज।
महाराज बचपन प्ले, के.जी. वन के.जी. टू, ये क्या सुन रहा हूँ मैं। प्रथम कक्षा में प्रवेश के पूर्व ये नन्हें बालक बालिकाएँ तीन कक्षाएँ उत्तीर्ण कर चुके होते हैं। घोर अनर्थ है यह। बच्चों के माँ की गोदी में खेलने के दिन, शाला प्रांगण मे बीतते हैं। वह भी मात्र इस कारण की माता-पिता के पास इनके लिए समय नही है।
महामंत्री क्षमा करें महाराज किंतु अब तो यह सब परम्परा में शुमार हो गया है, हमारी दिनचर्या में शामिल है। छ :बजे से ही सैकड़ों बच्चे सड़क पर वाहन की प्रतीक्षा में सड़क पर देखे जा सकते हैं।
महाराज ठीक है, ठीक है अब मामले का विष‌यांत्रण न करें। इन बस्तों की शिकायतों पर गौर किया जाए। (फिर बस्ते की ओर इंगित करते हुए) बोलो नन्हें बस्ते तुम्हें क्या दुःख है?
नन्हा बस्ता महाराज आप हमारी हालत देखिये, हम पहली कक्षा के बस्ते हैं। ये देखिये हमारे भीतर कितनी किताबें ठुसीं हुई हैं (कमर की तरफ इशारा करता है) हवा जाने तक को जगह नहीं है। महाराज मैं जगह-जगह से फट गया हूँ फिर भी रोज़ सबेरे मुझे किताबों से भर दिया जाता है। ऊपर-नीचे, अगल-बगल, सबमें किताबें भर दी जाती हैं। कापियों को जबरन भीतर धका दिया जाता है, साँस लेने को जो जगह बचती भी है, उसमे पेन पेंसिलें रबर स्केच कलर ठूँस दिए जाते हैं।
महाराज अरे बस्ते बेटे आप यहाँ आये हैं, आपके मालिक कहाँ हैं? आख़िर आप किसी बच्चे के ही तो बस्ते होंगे, जिसके कंधे पर आप टंग‌कर जाते हैं।
बस्ता महाराज वह नन्हा बालक यहाँ नहीं आ सकता। उसके शिक्षकों ने उसे
हिदायत दी है, अगर बस्ते के वज़न संबंधी कोई शिकायत की तो शाला से निष्कासित कर देंगे। वह आपके पास आने से डरता है महाराज। मुझ जैसे भारी बस्ते को रोज़ लाद‌ कर शाला जाता है बेचारा, कमर झुक गई है, पर मुँह से एक शब्द भी नहीं बोलता। सभी बच्चों के यही हाल हैं। हम लोगों ने कहा था, हड़ताल कर दो पर डरते हैं बेचारे। उन पर दया आती है। महाराज तब ही तो हम बस्तों ने मिलकर आप तक आने की हिम्मत की है न्याय करें महाराज।
महाराज इतनी सारी किताबें इतने छोटे बस्ते में! महामंत्री इस बस्ते को तुलवाओ .... (महामंत्री इशारा करता है और एक सैनिक वज़न तोलने की मशीन ले आता है। महामंत्री बस्ता उस पर रख देता है)
महामंत्री (मशीन में पढ़ते हुए) महाराज चौदह किलोग्राम .और ....और .... तीन सौ ग्राम, चौदह किलो तीन सौ ग्राम है महाराज।
महाराज ओह इतना वज़न, चौदह किलो ग्राम से भी अधिक। महामंत्री उस बच्चे का वज़न कितना होगा जो इस बस्ते को लादकर शाला ले जाता है। हम वस्तु स्थिति जानना चाहते हैं। लगता है हम अपने देश के नौनिहालों को प्रताड़ित कर रहे हैं । उस बच्चे को हाज़िर किया जाए तुरंत अभी, हम शीघ्र ही न्याय करना चाहते हैं।
महामंत्री जी महाराज अभी बुलवाता हूँ (महामंत्री महाराज के चेहरे पर आते
क्रोध के भावों को पढ़कर सहम गया था। वह एक सिपाही को इशारा करता है। महाराज सभी बस्तों की तरफ दृष्टि डालकर अनुमान लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि इन बस्तों में कितनी किताबें भरी हैं।)
  (एक बच्चा डरते-डरते मंच पर प्रवेश करता है)
महाराज बच्चे यह तुम्हारा बस्ता है?
बच्चा हाँ महाराज .....जी महाराज हाँ, हाँ .....मेरा ही है (बच्चे का मुँह घबराहट में सूख रहा है वह थूक गुटकने का प्रयास कर रहा है)
महाराज बच्चे डरो नहीं मैंने तुम्हें दंड देने के लिए नहीं बुलाया है। हम तुम्हारे दुखों का निवारण करना चाहते हैं। क्या तुम इस बस्ते को लेकर रोज़ शाला जाते हो? कहाँ रखते हो, कंधे पर या बगल में लटकाते हो?
बच्चा महाराज हम इसे पीठ पर लादते हैं। बस्ता पीठ पर होता है और उसकी स्ट्रिप्स कंधे पर होती हैं महाराज।
महाराज बच्चे तुम्हें वज़न महसूस नहीं होता, क्या आराम से तुम इसे शाला
ले जाते हो?
(बच्चा चुपचाप खड़ा रहता है) बोलो-बोलो ख़ामोश क्यों हो गए।
बच्चा महाराज बहुत ही भारी होता बस्ता। हम तो शाला बस से जाते हैं फिर भी बस स्टेण्ड तक तो लादकर‌ ही ले जाना पड़ता है। शाला में भी, सड़क से भीतर तक जाने में तो लादना ही पड़ता है। महाराज कुछ गरीब बच्चे तो घर से पैदल ही बस्ता लादकर शाला जाते हैं। (बच्चे की आँख में आँसू आ जाते हैं)
महाराज महामंत्री इस बालक का वज़न भी तो देखो। मुझे प्रतीत होता की बस्ते का वज़न बालक के वज़न से अधिक है।
(महामंत्री बच्चे को मशीन पर तौलता है)
महामंत्री ये रहा महाराज ....तेरह किलो... और और.... दो सौ ग्राम ..तेरह किलो दो सौ ग्राम है महाराज इस बच्चे का वज़न।
महाराज (चेहरे पर करुणा का भाव लाकर) हे भगवान यह कैसा अन्याय हो रहा है हमारे राज्य में। महामंत्री देखा मेरा अनुमान सच निकला न, बस्ते का वज़न बच्चे से अधिक है। महामंत्री क्या हम अपराध नहीं कर रहे हैं इन बच्चों के साथ? जिन बच्चों की पीठ पर माँ की प्यारी-प्यारी थपकियाँ होना चाहिएँ, हाथों में गुड्डे-गुड़ियाँ होनी चाहिएँ, उन पर भारी भरकम बस्तों का भार ,किताबों की गठरी। क्या हमारी संवेदनाएँ मर गई हैं? क्या हम हृदयहीन नहीं हो गए हैं? अब दूसरे बच्चों की भी जानकारी ली जाए। वैसे हंडी का एक दाना देखकर हमने चावल पकने का अंदाज़ तो लगा ही लिया है, फिर भी......। (दूसरे बस्तों की तरफ देखते हैं)
महामंत्री (अंगुली से इशारा करते हुए) महाराज ये चौथी, सातवीं, दसवीं और बारहवीं के बस्ते हैं।
महाराज यह भी ठसाठस भरे हुए हैं। वज़न भी लगभग इतना ही प्रतीत हो रहा है। निश्चित तौर पर बड़ी कक्षाओं के बच्चे आयु में बड़े ही होंगे और इनके बस्तों का वज़न, बच्चों के वज़न से कम या बराबर होगा।
महामंत्री ठीक कहा महाराज अधिक बड़े बच्चों के लिए बस्ते का वज़न की समस्या नहीं के बराबर होगी।
महाराज नहीं महामंत्री नहीं, भले वज़न की समस्या न हो फिर भी इतनी अधिक किताबों की क्या आवश्यकता है। बीस किलो का बच्चा भी पंद्रह किलो का बस्ता क्यों लादे फिरे। जिन कन्धों पर देश का भार हो, वे नादान कोमल कंधे बस्ता ढोयें, यह बात काबिले बर्दाश्त नहीं है महामंत्री। (दूर एक मेज की तरफ देखते हुए) वह मेज पर किताब कैसी पड़ी हुई है। किसकी हैं वह?
महामंत्री महाराज वह कॉलेज के किसी विद्यार्थी की कॉपी लगती है।
महाराज तो कॉलेज जाने वाला विद्यार्थी केवल कॉपी लेकर कॉलेज जाता है?
 महामंत्री हाँ महाराज, वह कभी-कभी नोट बुक लेकर कॉलेज जाता है।
महाराज कभी-कभी से क्या मतलब है महामंत्री?
महामंत्री वह कॉलेज रोज़ नहीं जाता, आजकल; कॉलेज रोज़ लगते भी नहीं हैं। फिर वहाँ कम्प्यूटर इत्यादि से भी काम चल जाता है। अपनी जेब में ये बच्चे डायरी भी रखते हैं महाराज।
महाराज बस करो महामंत्री, बहुत हुआ। मुझे समझ में आ रहा की देश का भार छोटे लोगों के कन्धों पर ही है। जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं जबाबदारी से मुक्त होते जाते हैं। सारा देश छोटे लोगों पर निर्भर है। किसान मेहनत करता है तिजोड़ी व्यापारियों की भरती है, परिश्रम मजदूर करता है हवेली सेठ की खड़ी होती है। बड़े लोग कानून बनाते हैं पालन सिर्फ छोटे करते हैं। कारीगर कपड़े बुनता है साहब लोग ठाठ से पहनते हैं और वह कारीगर फटेहाल है। यही है न देश की व्यवस्था।
महामंत्री बात तो आपकी सोलह आने सच है महाराज
 

(बाहर बस्तों का शोरगुल सुनाई दे रहा है, नारेबाज़ी हो रही है शोर दरवाज़े तक आ जाता है)

 

बस्तों पर कुछ रहम करो,
ठूँस-ठूँस कर नहीं भरो

 

(महाराज मंच पर खड़े हो जाते हैं) - मेरे प्यारे बस्तो आज हमने आपकी फरियाद सुनी। यथार्थ में आप बहुत कष्ट में हैं छोटे बच्चों के बस्ते बहुत भारी हैं, यह हमने अनुभव किया है। हम यह बस्तालाद‌ परिपाटी शीघ्र बंद करेंगे। परिवर्तन आवश्यक है। हमारे पूर्वज भी बस्ता लेकर नहीं जाते थे। गुरुकुल में ही सारी व्यवस्था होती थी। वेद, पुराण, स्मृतियाँ और आयुर्वेद के बड़े ग्रंथों के लिए कभी भी भारी भरकम किताबों, कापियों की ज़रूरत नहीं पड़ी। पुरानी आध्यात्मिक पद्धति अब आधुनिक हो चुकी है। कम्प्यूटर का युग है तो बस्तों का क्या काम। हम बस्तों का चलन बंद कर देंगे। शाला की कक्षाओं में हर टेबल पर कम्प्यूटर होंगे, हर घर में कम्प्यूटर होंगे। किताबें बंद कापियाँ बंद। ना रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। जब किताबें कापियाँ ही नहीं होंगीं तो बस्तों का क्या काम।

   
 

परदा धीरे धीरे गिरता जाता है।
(मंच के पार्श्व में आवाज़ आ रही है महाराज
की जय महाराज अमर रहें)

   
   
   

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