बनारस की गली में

15-04-2020

बनारस की गली में

आलोक कौशिक (अंक: 154, अप्रैल द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

बनारस की गली में 
दिखी एक लड़की 
देखते ही सीने में 
आग एक भड़की 


कमर की लचक से 
मुड़ती थी गंगा 
दिखती थी भोली सी 
पहन के लहँगा 
मिलेगी वो फिर से 
दायीं आँख फड़की 
बनारस की गली में... 


पुजारी मैं मंदिर का 
कन्या वो कुँआरी 
निंदिया भी आए ना 
कैसी ये बीमारी 
कहूँ क्या जब से 
दिल बनके धड़की 
बनारस की गली में... 


मालूम ना शहर है 
घर ना ठिकाना 
लगाके ये दिल मैं 
बना हूँ दीवाना 
दीदार को अब से 
खुली रहती खिड़की 
बनारस की गली में... 
 

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