ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार

15-02-2023

ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार

अजय अमिताभ 'सुमन' (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

पत्थर धर सर पर चलते हैं मज़दूरों के घर मिलते हैं, 
टोपी कुर्ता कभी जनेऊ कंधे पर धारण करते हैं। 
कंघा पगड़ी जाने क्या क्या सब तो है तैयार, 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
अल्लाह नाम भज लेते भाई राम नाम जप लेते भाई, 
मंदिर मस्जिद स्वाद लगी अब गुरुद्वारे चख लेते भाई। 
जीसस का भी भोग लगा जाते साई दरबार, 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
नैन मटक्का पे भी यूँ ना छेड़ो तीर कमान, 
चूक-वुक तो होती रहती भारत देश महान, 
गले पड़े तो शोर शराबा क्योंकर इतनी बार? 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
माना उनके कहने का कुछ ऐसा है अन्दाज़, 
हँसी कभी आ जाती हमको और कभी तो लाज। 
भूल-चुक है माना पर माफ़ी दे दो इस बार। 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
प्रजातंत्र में तो होते रहते हैं एक बवाल, 
चमचों में रहते हैं जाने कैसे देश का हाल। 
सीख जाएँगे देश चलाना आये जो इस बार। 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
फटी जेब ले चलते जग में छाले पड़ जाते हैं पग में, 
मर्सिडीज़ पे उड़ने वाले क्या क्या कष्ट सहे हैं जग में। 
जोगी बन दर घूम रहे हैं मेरे राजकुमार, 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 

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