मन इच्छुक होता वनवासी

15-01-2024

मन इच्छुक होता वनवासी

अजय अमिताभ 'सुमन' (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

जब जग बन्धन जुड़ जाते हैं, 
भाव सागर को मुड़ जाते हैं। 
इस भव में यम के जब दर्शन, 
जब होते तब मन अभिलाषी। 
 
ओ मरघट के मूल निवासी, 
भोले भाले शिव कैलाशी। 
मन अंतर को आकुल व्याकुल, 
जग जाता अंतर संन्यासी। 
 
मन ईक्षण है चाह तुम्हारी, 
चेतन प्यासा छाँह तुम्हारी। 
इधर उधर प्यासा बन फिरता, 
कभी मथुरा कभी काशी। 
 
ओ मरघट के मूल निवासी, 
भोले भाले शिव कैलाशी। 
यदा कदा तेरे दर्शन को, 
मन इच्छुक होता वनवासी। 

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