रोटी के अन्धे, क्या गाए, बेहतर भारत कब तक?

01-03-2023

रोटी के अन्धे, क्या गाए, बेहतर भारत कब तक?

अजय अमिताभ 'सुमन' (अंक: 224, मार्च प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

राजनीति की रीत नई है कुँवारों से प्रीत सही है, 
ममता, माया, मोदी, योगी, जोगी गण की जीत नई है। 
जनतंत्र की नई माँग पर यौवन है लाचार, 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
गठबंधन का दोष यही है जो दोषी है वो ही सही है, 
कोई चाहे करे ढिठाई पर पर तंत्र की बात यही है। 
सत्ता की भी यही ज़रूरत देसी यही जुगाड़। 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
आप चाहें तो बुद्धि भाग्य का हो सकता है योग, 
और कुर्सी के सहयोगी का मिल सकता सहयोग। 
कबतक माता का रहे अधूरा सपना एक आज़ार। 
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार, 
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार। 
 
धनिया नींबू दाम बढ़ेगा, कब तक बोलो कब तक? 
डीज़ल का यूँ नाम बढ़ेगा, कबतक आख़िर कबतक? 
जनता की पीड़ा तो हर लो, क़ीमत आटे की कम कर लो। 
रोटी के अन्धे, क्या गाए, बेहतर भारत कब तक? 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
सांस्कृतिक कथा
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
नज़्म
किशोर साहित्य कहानी
कथा साहित्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में