रोटी के अन्धे, क्या गाए, बेहतर भारत कब तक?
अजय अमिताभ 'सुमन'
राजनीति की रीत नई है कुँवारों से प्रीत सही है,
ममता, माया, मोदी, योगी, जोगी गण की जीत नई है।
जनतंत्र की नई माँग पर यौवन है लाचार,
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार,
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार।
गठबंधन का दोष यही है जो दोषी है वो ही सही है,
कोई चाहे करे ढिठाई पर पर तंत्र की बात यही है।
सत्ता की भी यही ज़रूरत देसी यही जुगाड़।
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार,
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार।
आप चाहें तो बुद्धि भाग्य का हो सकता है योग,
और कुर्सी के सहयोगी का मिल सकता सहयोग।
कबतक माता का रहे अधूरा सपना एक आज़ार।
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार,
ज़रा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार।
धनिया नींबू दाम बढ़ेगा, कब तक बोलो कब तक?
डीज़ल का यूँ नाम बढ़ेगा, कबतक आख़िर कबतक?
जनता की पीड़ा तो हर लो, क़ीमत आटे की कम कर लो।
रोटी के अन्धे, क्या गाए, बेहतर भारत कब तक?
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आख़िर कब तक आओगे?
- ईक्षण
- एकलव्य
- किरदार
- कैसे कोई जान रहा?
- क्या हूँ मैं?
- क्यों नर ऐसे होते हैं?
- चाणक्य जभी पूजित होंगे
- चिंगारी से जला नहीं जो
- चीर हरण
- जग में है संन्यास वहीं
- जुगनू जुगनू मिला मिलाकर बरगद पे चमकाता कौन
- देख अब सरकार में
- पौधों में रख आता कौन?
- बेईमानों के नमक का, क़र्ज़ा बहुत था भारी
- मन इच्छुक होता वनवासी
- मरघट वासी
- मानव स्वभाव
- मार्ग एक ही सही नहीं है
- मुझको हिंदुस्तान दिखता है
- मृत शेष
- रावण रण में फिर क्या होगा
- राष्ट्र का नेता कैसा हो?
- राह प्रभु की
- लकड़बग्घे
- शांति की आवाज़
- शोहरत की दौड़ में
- संबोधि के क्षण
- हौले कविता मैं गढ़ता हूँ
- क़लमकार को दुर्योधन में पाप नज़र ही आयेंगे
- फ़ुटपाथ पर रहने वाला
- कहानी
- सांस्कृतिक कथा
- सामाजिक आलेख
- सांस्कृतिक आलेख
- हास्य-व्यंग्य कविता
- नज़्म
- किशोर साहित्य कहानी
- कथा साहित्य
- विडियो
-
- ऑडियो
-