विश्वास

16-02-2019

विश्वास
का प्रकाश स्तम्भ
खींच लाता हे
मंज़िल की किश्ती को
अपनी तरफ,

उद्विग्न मन
कामनाओं की तरंगो से
भले तरंगित होता रहे,
जग की असीमित
वासनाओं से
चाहे जितना भी
उद्वेलित होता रहे

यदि
हृदय के किसी कोने में
श्रद्धा का दीया
टिमटिमाता है
यक़ीन का प्रकाश
झिलमिलाता है
निश्चित रूपेण
         गंतव्यता स्वयं
                गले आ मिलती है
                         अपनी निजता से
               आत्मैक्य कर
          अपने इष्टतम से
  फिर ये काया
               जा लिपटती है

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