होने का अहसास
निर्मल सिद्धूहोना...
सिर्फ़ कहने मात्र से ही
नहीं होता
न ही होता है
होने का अहसास,
होने के लिए तो
प्रतिदिन, प्रतिपल
दिलाना पड़ता है
होने का आभास,
ज्यों दिलाते हैं
एक-दूजे को
मीन औ’ सागर
हवा औ’ ख़ुश्बू
धरती औ’ आकाश
तब जाकर कहीं
खिलते हैं अनेक पुष्प
जिनसे महकती है फिर
रोज़ नई इक आस!
होना –
कहने से ही फ़क़त
होना नहीं होता!