पतझड़
निर्मल सिद्धूआने है लगा
जुदाई का मौसम
पत्ते उदास
दुख तो होता
अच्छे दिनों के बाद
छूटे जो साथ
विदा करता
अपने ही अंगों को
पेड़ बेचारा
करी विदाई
ले फुलकारी आज
पेड़ पसीजे
बेघर हुये
पतनकाल आया
लाचार पत्ते
पेड़ था कभी
पत्तों से भरपूर
हुआ अकेला
बिछड़ के भी
पलेगा जड़ों में ही
बनेगा खाद
है तो विदाई
रंग बड़े रंगीन
लुभाते मन
सदा न रहे
पतझड़ का दौर
सुख भी आते
अच्छा है वक़्त
पतझड़ ने फिर
दिया संकेत
पतझड़ ज्यों
निराला है जीवन
सदा बदले
बजे संगीत
शहनाई की धुन
विदा या मेल
जीवन-चक्र
यूँ ही चलता जाता
आना व जाना
हर बन्धन
कितना भी हो सख़्त
टूट ही जाता
आता है समां
अच्छा या बुरा जो भी
जाता है टल