तुम क्यों मुझे तड़पा रहे हो?

01-06-2020

तुम क्यों मुझे तड़पा रहे हो?

धर्मेन्द्र सिंह ’धर्मा’ (अंक: 157, जून प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

तुम क्यों मुझे तड़पा रहे हो?
गुनाह क्या है? जो रुला रहे हो।
बेक़रारी बढ़ गयी है क्यों?
मेरी नींदें क्यों चुरा रहे हो।


यादों में तेरी रूठी,
घड़ियाँ ये ऐतबार की।
छुप-छुप देखा करतीं,
निगाहें भी ये प्यार की।
महसूस क्यों होता है मुझे?
मेरी साँसों में समा रहे हो।
तुम क्यों मुझे....


रातरानी महक से,
महके मेरा घर-आँगन।
यूँ सताओ ना मुझे,
आ भी जाओ तुम साजन।
आँखों में यूँ आँसू देकर,
मेरे दिल को क्यों जला रहे हो?
तुम क्यों मुझे....


सावन में बादल बन,
भिगोने मुझे आ जाओ।
दिल में बस जाऊँ भी,
ऐसे ना तुम इठलाओ।
होठों पर ख़ामोशी है क्यों?
लगता है, तुम गुनगुना रहे हो।
तुम क्यों मुझे....

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