क़िस्से

धर्मेन्द्र सिंह ’धर्मा’ (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

कुछ नए कुछ पुराने, 
कुछ अनसुने, कुछ अनकहे
कुछ पनप रहे भीतर ही भीतर
जिनको कहने, सुनाने को . . . 
गवाही नहीं देता मेरा हृदय। 
 
कठोर स्वभाव से पुनः मेरा मन
क्यों लौट आता है, 
मृदुलता की ओर . . . 
हे ईश्वर! 
क्यों नया मार्ग बनाने के आवेश में, 
व्याकुल हो, 
खो देता हूँ अपना धैर्य! 
 
क़िस्सों के इर्द-गिर्द घूमता 
मेरा कुंठित मन, 
भरोसे का प्रतीक
स्वतः ही बन जाता है। 
किसी ऐसे मार्ग की तलाश में
जो अधिक दूर है, 
किन्तु न जाने किस छोर पर? 
काश! वह मिल पाए मुझे . . . 

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