सुख की रोटी
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’सुख की चोटी
दुख के परबत
से कुछ छोटी है
साँस रोकतीं
खुली हवायें
भूख सुनाती
असह कथायें
पड़ा हुआ है
लटका जीवन
महँगी रोटी है
छल-छंदों के
अपने नारे
करते हैं जो
वारे-न्यारे
चली उसी की
जिसके हाथों
दौलत मोटी है
मूक समर्थन
रोना रोता
समाधान का
शैशव सोता
लोकतंत्र भी
चुटकी काटा
फटी लँगोटी है
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