कवि जो कुछ लिखता है

01-08-2021

कवि जो कुछ लिखता है

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

 

कवि जो कुछ लिखता है, वह
भाषा की संपति है।
 
मुँह से निकले हर अक्षर की
कोमल काया है,
रचनाओं के उठते पुल का
मंथन पाया है,
पीड़ा की उमड़ी लहरों की
भावित पंगति है।
 
भूली बिसरी यादों की छत
ईंट सुहानी है,
शब्दों के संवादों की यह
नई कहानी है,
यह सामाजिक  घटनाक्रम की
छाया संप्रति है।
 
आसमान का पूर्व क्षितिज है
सूरज का रथ है,
भावों की यात्राओं की वह
पगडण्डी, पथ है,
ध्वनि-तुरही के नसतरंग की,
स्नेहिल संगति है।
 
शब्दावलियों के गमलों का
घेरा, यह थाला,
अनुभव के अनुषंगों की है,
गुथी हुई माला,
वाणी के लय ताल छंद की,
अनुपद दंपति है। 
 

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