हाँ! वह लड़की!!
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’पानी की दो भरी बाल्टियाँ,
लेकर हाथों में,
हाँ! वह लड़की!!
अपनी एक कहानी ढोती है।
दायित्वों से लदी पड़ी है,
सपने पाले हैं,
चिंताओं के बोझ बाँधकर,
छत पर डाले हैं,
सब पुरखों के असहज दुख को,
सिर पर रखकर ,
हाँ! वह लड़की!!
पीड़ा एक पुरानी ढोती है।
जिस ज़मीन पर उसका हक़ है,
काटे उसे नदी,
वर्तमान तो हँस-हँस देखा,
मौनी रही सदी,
सदा ग़रीबी में ही जीती,
लिए सफलता,
हाँ! वह लड़की!!
धारा नई, रवानी ढोती है।
सात साल से अधिक नहीं है,
जिसकी देह अभी,
पर जीवन के उठा-पटक के,
गाए गीत सभी,
बचपन के दिन हैं, फिर भी वह
हार न माने,
हाँ! वह लड़की!!
छोटी किंतु जवानी ढोती है।
आसपास घर-गाँव नहीं हैं,
केवल टीले हैं,
लगता है उस पार क्षितिज के,
बसे क़बीले हैं,
‘पानी ही है प्राण’ इसलिए,
एक प्रेरणा,
हाँ! वह लड़की!!
पानी बनी भवानी ढोती है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- गीत-नवगीत
-
- अंतहीन टकराहट
- अनगिन बार पिसा है सूरज
- कथ्य पुराना गीत नया है
- कपड़े धोने की मशीन
- करघे का कबीर
- कवि जो कुछ लिखता है
- कहो कबीर!
- कोई साँझ अकेली होती
- कोयल है बोल गई
- कोहरा कोरोनिया है
- खेत पके होंगे गेहूँ के
- घिर रही कोई घटा फिर
- छत पर कपड़े सुखा रही हूँ
- जागो! गाँव बहुत पिछड़े हैं
- टंकी के शहरों में
- निकलेगा हल
- बन्धु बताओ!
- बादलों के बीच सूरज
- बूढ़ा चशमा
- विकट और जनहीन जगह में
- वे दिन बीत गए
- शब्द अपाहिज मौनीबाबा
- शहर में दंगा हुआ है
- संबोधन पद!
- सुख की रोटी
- सुनो बुलावा!
- हाँ! वह लड़की!!
- विडियो
-
- ऑडियो
-