घिर रही कोई घटा फिर
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’खिल रहा नवगीत का शुभ
फिर नया संदर्भ कोई
घिर रही कोई घटा फिर
सतह पर अवतरणिका की
सज रही अनुसंधि कोई
शब्द की मणिकर्णिका की
हँस रहा मधुमास लेकर
फिर नया गंधर्व कोई
फिर किसी गंगाजली में
हो रहा है जल एकत्रित
साधना का अर्थ कोई
भावना का पल निमंत्रित
जुड़ रहा है आगमन का
फिर नया संबंध कोई
कशिश की हर आत्मा में
दर्द के अंकुर छिपे हैं
सत्य की अनुगूँज के स्वर
कल्पना के सुर छिपे हैं
लग रहा है मिल रहा है
मर्मरित अनुबंध कोई
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