कोहरा कोरोनिया है
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’आज के दुष्कर समय को,
स्वयं घर में बंद रहकर,
सौम्यता से,
कुछ दिनों तक काटना है।
घूमना, बाहर निकलकर
टहलना तक, है मना,
कोहरा कोरोनिया है,
विश्व में छाया घना,
फट चुकी यादों की लुगरी,
शब्द की शुचि सूइयों से,
उल्लसित हो,
अर्थत: ही तागना है।
उड़ रहे संदेश जो अब,
जाँचकर है मानना,
संयमी अनुपम चँदोवा,
गगन तक है तानना,
समझना है यह कि, यह तो
है अकालिक और अस्थिर,
एक विपदा,
प्रकृति की यह यातना है।
सोचना है, मन पड़ा है,
योग की प्रिय कंदरा में,
स्वर पिरोने जा रहा है,
लय समन्वित अंतरा में,
यह अलौकिक, मानवीया,
तारतम्यिक,
भाववाही साधना है।
जो नियंत्रण में नहीं है,
है नहीं कोई दवाई,
स्वास्थ्य की चिंता लगी है,
हिचकियाँ लेती सचाई,
इस अवांछित युद्ध में हर
आदमी योद्धा बना है,
हर किसी का,
हर किसी से सामना है।