शजर से नये फल निकल आते हैं
निहाल सिंह122 122 122 12
शजर से नये फल निकल आते हैं
परिन्दों के भी पर निकल आते हैं
कभी सूखी थी ये ज़मीं दूर तक
जहाँ कितने ही घर निकल आते हैं
अभी दर्द भी है छुपा ऑंखों में
कि जिनमें समंदर निकल आते हैं
तेरी ऐसी बातें कभी सुन के फिर
व्रण दिल के अंदर निकल आते हैं