इधर पुर में तो प्रदूषण बहुत है
निहाल सिंह1222 1222 122
इधर पुर में तो प्रदूषण बहुत है
चलो बस्ती वहाँ गुलशन बहुत है
हवेली तो नहीं रहने की ख़ातिर
अभी मिट्टी का इक ऑंगन बहुत है
वहाँ पर तितलियाँ भी तो मिलेंगी
चलो खेतों में तुम उपवन बहुत है
गले हॅंसकर लगा लो तुम क़ज़ा को
अभी जीवन में तो उलझन बहुत है