चपला चमके
निहाल सिंह
गरज-गरज यूँ जलधर गरजे
चमक-चमक फिर चपला चमके
बिछी हिम पे पिछौरी बर्फ़ की
बहती जाए धारा नद की
टिप-टिप टिपके शम्बर छत से
इंद्र धनुष निकला अम्बर से
काली बदली आई उड़ के
चमक-चमक फिर चपला चमके।
निशि उपवन में नाचें शिखिनी
अर्ण-ताल से भर गई अवनि
चहो दिशा में बिखरी स्याही
दिव में छाये मेघ अचाही
सावन-भादों बरसे जमके
चमक-चमक फिर चपला चमके।
माटी से निकली सौरभ-सौंधी
धरती उगले कितनी चाॅंदी
खेतों में बिखरा अर्ण जितना
हुआ मगन फिर हलधर उतना
पग बैलों के नूपुर छमके
चमक-चमक फिर चपला चमके।