आसरा

निहाल सिंह (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

तुमको क्या सुधि की तुम क्या हो
नसैनी का तुम आसरा हो
 
ठहरी हुई आयु में मेरे
धारा बनकर आई हो तुम
डूबती हुई कश्ती का इक
किनारा बनकर आई हो तुम
 
कुहासे से लिप्त जीवन में
रोशनी जैसी बिखरी हो
घनघोर असित विभावरी में
चंन्द्रिका जैसी निखरी हो
 
मेरे पास रहना तुम सदा
ना कोई कभी फ़ासला हो
तुमको क्या सुधि कि तुम क्या हो
नसैनी का तुम आसरा हो
 
मेरे निर्जल अधरों पर तुम
वृष्टि बनकर गिरने लगी हो
खोये हुए चेहरे पर तुम
फूल बनकर खिलने लगी हो
 
ऑंगन के कोने-कोने में
धुकधुकी जैसी चमकती हो
उजड़े हुए हृदय के भीतर
सारंगों जैसी खिलती हो
 
ना तुम-सा कोई अच्छा है
ना तुम-सा कोई प्यारा है
तुमको क्या सुधि कि तुम क्या हो
नसैनी का तुम आसरा हो

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