बेटियाँ
निहाल सिंहपायल की झंकार बेटियाँ
सावन की फुहार बेटियाँ
धान सी लहराती खेतों में
प्रकृति का शृंगार बेटियाँ
कोंपलों को खिलने दीजिए
तितलियों को उड़ने दीजिए
वो तुलसी हैं जिनके इत्र से
ऑंगन को महकने दीजिए
सावन के झूलों जैसी हैं
भादों के मेलों जैसी हैं
लगती है परियों जैसी प्यारी
फागुन के फूलों जैसी हैं
धूप के ज्यूॅं खिली हो जैसे
हवा के ज्यूॅं चली हो जैसे
बल खाती नदियाँ दूर कहीं
पहाड़ों से मिली हों जैसे
दो घरानों की लाज हैं ये
कण्ठ हैं ये, आवाज़ हैं ये
बिन जिनके अपूर्ण हैं ख़ुशियाँ
संगीत हैं ये, साज़ हैं ये!