नयी ऋतु है आई
निहाल सिंहशाख़-शाख़ पर कलियाँ हैं मुस्कायीं
तितलियाँ फूलों पर है मँडरायीं
दूब-दूब पर शबनम उतर आई
नीले गगन में पतंगें लहराईं
तब जाकर ये नयी ऋतु है आई
धरा पर कोहरे की बदली छाई
परत पर गुनगुनी धूप निकल आई
उत्तर दिशा में शीतल पवन लहराई
पहाड़ों पर हिम ने चादर बिछाई
तब जाकर ये नयी ऋतु है आई
जी भरकर हलवा, मूँगफली खाई
शीत लगी तो ओढ़ ली रजाई
ठण्डी देह को आँच की लौ भाई
गर्म दूध पर जम गई फिर मलाई
तब जाकर नयी ऋतु है आई