मिला ना तोड़
कृष्णा वर्माखिंची लकीरें चिंता की मुख
खोज ना मिला निदान
आँख शुष्क सपने सब रीते
पतझड़ सी वीरान
युग बीते जन व्यस्त खोजते
पीड़ाओं का तोड़
हर कोशिश नाकाम पकड़ने
में जीवन का छोर
कौन अधूरी कथा कहानी
जिनके रेशे उलझे
समझ ना पाए सिरे कहाँ से
पकड़ें उलझन सुलझे
इक पकड़ें छुटे दूजी बाँकी
ताने-बाने की डोर
सतत प्रयत्न कर योद्धा हारे
डूबे कई गोताखोर
लाख जतन कर रहे छानते
राह गली हर मोड़
खोज-खोज हारा जग युक्ति
थकी ना मन की होड़।