कृष्णा वर्मा - दीवाली हाइकु
कृष्णा वर्मादीप माला ज्यों
उतरी आकाश से
तारों की लड़ी।
उजड़ी माँग
अमावस की भरें
दीप कतारें।
सतत जलें
आस्था की डोर थामें
नन्हा दीपक।
नन्हें दीपों की
लहराती लौ काटे
सघन तम।
सजे दीवाली
कुम्हार कृति लाए
धरा पे नूर।
दीया औ बाती
अमा का स्याह तन
उजला बनाती।
ज्योतित दीप
ज्यों झलमल तारे
टिमटिमाएं।
बनों उजास
परहित के लिए
भरो उजास।
मिटें अँधेरे
मनुज धरे स्वयं
जो दीप रूप।
दीवाली दीप
हैं प्रेम के प्रतीक
लाएं समीप।