कृष्णा वर्मा - सेदोका - 001
कृष्णा वर्मा
1.
शीशे की तख़्ती
ओस की स्याही संग
उकेरा उँगली ने
तुम्हारा नाम
ठहर गई रात
चलता रहा चाँद।
2.
नामुमकिन
किसी बरसात को
बूँद-बूँद लिखना
हज़ारों शब्द
दिए हैं क्रंदन को
लाखों बचे हैं बाक़ी।
3.
अपना हाथ
छुड़ाकर ख़ुद से
निकल आए दूर
वक़्त है कम
चलो मुड़के चलें
अपने से मिलने।
4.
चला सूरज
दिन के मुँह पर
मल के उदासियाँ
उन्मन साँझ
ओस-ओस रोएगी
रात भर रजनी।
5.
आसान नहीं
डालियों से छूट के
दूजों संग उड़ना
अंधी भीड़ में
कोई न अपना जो
बचाए आँधियों से।
6.
जारी करे जो
सूरज फ़रमान
कोने-कोने जा धूप
करे तलाशी
हवा लुके पत्तों में
सहमी डरी-डरी।
7.
सनद पर
उमर की झुर्रियाँ
करतीं हस्ताक्षर
दोहराता है
फिर से बचपन
अपनी कहानियाँ।
8.
उम्र के पग
जितना बढ़ें आगे
उतना ही अधिक
ना जाने कौन
जीवन की रील को
फेर देता है उल्टा।
9.
नित्य खेंची हैं
आँखों के किनारों पे
काजल की रेखाएँ
फिर क्यूँ कैसे
यादों के रेले संग
आ जाता है सैलाब।
10.
खुल जाते हैं
जब यादों के थान
मिलें गज-गज पे
दुख-सुख की
धुँधली सी मोहरें
औ रिश्तों के ज़ख़ीरे।
11.
भरे अहं से
बनें आदर्शवादी
उलझें बहस में
भीतरी पशु
रंगले सियारों की
खोल देता है पोल।
12.
दूजों से ज़्यादा
अपनों से रहना
हमेशा सावधान
राम से नहीं
विभीषण से हारा
रावण बलवान।
13.
मरा भरोसा
कोई नहीं अपना
वक़्त हुआ शैतान
कहें जो रिशते
साथ नहीं छोड़ेंगे
ले लेना हस्ताक्षर।
14.
अपने दुख
अपनी मुश्किलों को
अपने तक रखें
मुखर होके
कह दिए किसी को
वो सौदा ही करेंगे।