डायरी का पन्ना – 010 : रिमोट

15-10-2021

डायरी का पन्ना – 010 : रिमोट

विजय विक्रान्त (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

एक मशहूर कहावत है कि “दूसरे की थाली में परोसा हुआ बैंगन भी लड्डू लगता है”। अपना जीवन तो हम सब जीते ही हैं लेकिन दूसरे की ज़िन्दगी में झाँक कर और उसे जी कर ही असलियत का पता चलता है। इस कड़ी में अलग अलग पेशों के लोगों के जीवन पर आधारित जीने का प्रयास किया है।

 

मेरा नाम रिमोट है और मेरा सारा परिवार एक मुद्दत से आप सबसे भली-भाँति परिचित है और सच्चे मन से आपकी सेवा कर रहा है। अगर कहा जाये कि हमारा और आपका चोली-दामन का साथ है तो ग़लत नहीं होगा। समय के साथ-साथ मेरे ही नहीं, बल्कि मेरे बहन–भाइयों के भी न जाने कितने नये अवतार आते रहते हैं। इन हर नये अवतार का ढाँचा, शक्ल, सूरत, नैन-नक़्श और काम करने का तरीक़ा पुराने अवतार से एक दम भिन्न होता है। रह-रह कर मैं अपने जन्मदाता को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ। बलिहारी जाँऊ मैं अपने इस रब पर जिसने इतनी बढ़िया चीज़ का अविष्कार किया है। दूर बैठे-बैठे ही मेरा या मेरे किसी परिवार का बस एक बटन दबाने पर सारा काम अपने आप हो जाता है। ज़रा सा भी उठने की या इस काया को कष्ट देने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती। 

एक वो ज़माना भी था जब टीवी की चैनल बदलने, आवाज़ (वौल्यूम) को कम/ज़्यादा करने या फिर और कंट्रोल करने के लिये सोफ़े से उठकर जाना पड़ता था। अब आलम यह है कि मेरी संगत में रहकर बैठे-बैठे ही चैनल बदलना, आवाज़ को ऊँचा नीचा करना या बिल्कुल बन्द (म्यूट) करना बहुत आसान हो गया है। सोफ़े पर बैठे क्या खा रहे हो या क्या पी रहे हो; इस क्रिया में कोई दख़ल नहीं पड़ता। आप आराम से बैठो और मेरे शरीर के बटन दबाने पर बंदा टीवी कंट्रोल इत्यादि के सब काम कर देता है।

एक बात तो माननी पड़ेगी कि मेरी संगत में आने से पहले आपको जो थोड़ा बहुत शरीर को हिलाना पड़ता था वो अब बन्द हो गया है। कहीं-कहीं तो सोफ़े पर एक ही जगह पर बैठने से वहाँ पर एक गढ़ा भी पड़ गया है और आपके शरीर का वज़न भी कुछ बढ़ने लगा है। मेरे काम करने के तरीक़े पर आपको जो मेरी नियत पर शक़ होने लगा है कि मैं “अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गये सब के दाता राम” नारे का प्रचार तो नहीं कर रहा हूँ; वो बेबुनियाद है। इस बारे में मेरा कहना है कि अगर आप अपनी सहूलियत देखते हुये निकम्मे होते जा रहे हैं तो इस में मेरा क्या क़ुसूर है। यदि मेरे में आपके घर के कमप्यूटर, होम थियेटर, स्टीरियो इत्यादि को कंट्रोल करने की क्षमता है तो इस में आपको भी तो आराम मिलता है। मेरे बारे में यह कहना कि मैं घुसपैठिया हूँ और फटे जूते की तरह से फैलता जा रहा हूँ सरासर ग़लत कहना है।

अब ज़रा मैं अपने और अपने परिवार के लाभों के बारे में आपको कुछ बताना चाहता हूँ। बाहर मटरगश्ती करके जब आप घर लौटते हैं तो आपके कार से बिना उतरे ही मैं आपके गैराज का दरवाज़ा खोल देता हूँ और आपको सर्दी में भारी दरवाज़ा उठाने का कष्ट नहीं करना पड़ता। सर्दियों के दिनों में बाहर जाने से पहले और घर के अन्दर से ही मैं या मेरे परिवार का सदस्य आपकी कार स्टार्ट कर देता है ताकि आपकी श्रीमती जी के बैठने से पहले कार गरम हो जाये और उन्हें एकदम गर्मागर्म सीटें मिलें। 

यह हमारे ख़ानदान की ही कृपा है कि अब कार को खोलने, बन्द करने और स्टार्ट करने के लिये चाबी की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। हम में से कोई न कोई ये काम भी फट से कर देता है। कार के कंट्रोल में, एक बात तो आपको हमारी माननी पड़ेगी। बड़े पार्किंग लॉट में अब आपको अपनी कार ढूँढ़ना बहुत आसान हो गया है। मेरे शरीर का पैनिक बटन तो एक दम रामबाण है। सुनसान गलियारे में या कहीं भी और कभी भी अगर आपको ऐसा लगे कि कोई आपका पीछा कर रहा है तो इसे दबाने से आसपास के लोग चौकन्ने हो जाते हैं और ख़तरा टल जाता है। आपको शायद पता नहीं; रात को सोने से पहले बुद्धिमान लोग अपनी सुरक्षा के लिये बन्दूक की जगह मुझे अपनी नाईट टेबल पर रख देते हैं। रात में अगर ऐसा लगे कि घर में चोर घुस आये हैं तो पुलिस को फ़ोन करने से पहले पैनिक बटन को दबाने से कार का हार्न चीख़ चीख़ कर सारे मुहल्ले के लोगों को जगा देता है। ऐसे माहौल में चोर भला कहाँ टिक सकता है। उसको को तो अपनी जान के लाले पड़ जाते हैं और वो बेचारा दुम दबा कर भागने का रास्ता ढूँढ़ता है। घर में बिजली जलाने-बुझाने, फ़ायरप्लेस को चलाना बन्द करना, पँखा कम या तेज़ करने से लेकर परदों को खोलने और बन्द करने के लिये भी यह बंदा आप की ख़िदमत में हमेशा हाज़िर रहता है। 

एक वो ज़माना भी था जब मेरे कारण आप अपने शौक़िया हवाई जहाज़ उड़ाने और मॉडल रेलगाड़ी चलाने के शौक़ का पूरा मज़ा उठाते थे। आपको यह सब बहुत अच्छा लगता था। अब क्या बताऊँ आपको; बात यहाँ तक बढ़ गई है कि मैं अब ड्रोन वायुयान को शत्रु के खेमे में ले जाकर क़हर मचा सकता हूँ। कुछ सिरफिरे लोग मेरी शराफ़त का नाजायज़ फ़ायदा उठाने लगे हैं और बम्ब फोड़ने और निहत्थे लोगों के ख़ून करने पर मुझे मजबूर कर देते हैं। यह सब जानते हुये भी कि मेरी यह विनाशकारी हरकतें समाज और देश के लिये बहुत घातक हैं, मैं ग़लत हाथों में पड़ कर मजबूर हो जाता हूँ।

मेरा शरीर का हर बटन आपकी कुछ न कुछ सेवा के लिये सदा तैयार रहता है लेकिन क्या आपको मालूम है कि ऐसे लोगों को मोटापा, ओबिसिटी और वज़न बढ़ने के रोग लग जाने के ख़तरे के साथ-साथ बेचारे सोफ़े का भी कचूमर निकल जाता है। मुझे मालूम है कि आपको ये अच्छा नहीं लगता, इसीलिये अब मार्केट में नये-नये गेम्ज़ भी आ गये हैं जिनसे घर बैठे हुये आप पूरा व्यायाम कर सकते हैं। मुझे पूरी उमीद है कि आप इन व्यायामों से अपने शरीर को सदा निरोग बनाकर रखेंगे। ऐसी मेरी आशा है।

आपसे जाते जाते एक प्रश्न है मेरे दोस्त। कभी-कभी टीवी का चैनल बदलने के लिये मेरे शरीर के बटन दबाने पर बड़ी ज़ोरदार घड़घड़ की आवाज़ आने लगती है। ऐसे लगता है  जैसे कोई तूफ़ान आ गया हो। देखने पर पता चला कि टीवी का चैनल तो बदल गया है मगर साथ-साथ गैराज का दरवाज़ा भी खुल गया है – आख़िर क्यों? 

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