चतुर राज ज्योतिषी
विजय विक्रान्तमहाराजा करमवीर सिंह के दरबार में राज ज्योतिषी पण्डित श्याम मुरारी की बहुत चर्चा थी और बड़ा मान था। राजा कोई भी काम ज्योतिषी की सलाह के बिना नहीं करता था। समय बीतता गया और राजा को अपनी सीमाओं को बढ़ाने की इच्छा दिन प्रति दिन प्रबल होती चली गई।
एक दिन राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर अपने दिल की बात कही और पूछा कि क्या साथ वाले राजा पर आक्रमण करना ठीक रहेगा और यदि ठीक है तो उसका राज्य हड़प करने का कौन सा शुभ समय है।
यह जानते हुए भी कि पड़ोसी राजा बहुत बलवान है, श्याम मुरारी ने बिना सोचे समझे सलाह दी कि हे राजन! आप जल्दी से जल्दी आक्रमण कर डालें। आप इस संग्राम में अवश्य सफल होंगे।
ज्योतिषी के कहने पर करमवीर सिंह ने धावा बोल दिया। हुआ वही जिसका डर था। राजा को मुँह की खानी पड़ी। बहुत पिटाई हुई और जैसे तैसे करके अपनी जान बचा कर भागा। महल में आकर राजा ने सबसे पहले राज ज्योतिषी को बुलाया। ज्योतिषी को तो सब बात का पता चल गया था और उसे ये भी मालूम था कि उसको क्यों बुलाया जा रहा है। फिर भी वो चेहरे पर मुस्कान लेकर दरबार में पहुँचा।
आसन ग्रहण करने के बाद राजा ने ज्योतिषी से पूछा कि महाराज आप सब का भविष्य बताते हैं। क्या आपको अपना भविष्य भी पता है? राजा के प्रश्न के पीछे जो रहस्य था उसे जानने में पण्डित को ज़रा देर नहीं लगी। उसने हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा कि महाराज मैं ने सब नक्षत्रों का अध्ययन किया है और मुझे अपने और आपके भविष्य के बारे में सब कुछ पता है। राजा के यह पूछने पर कि आपकी मृत्यु कब होगी, पंडितजी ने बड़ी नम्रता से कहा कि महाराज कुछ ग्रहों का चक्कर ऐसा है कि मेरे और आपके नक्षत्रों का चोली दामन का साथ है। गणित के अनुसार मेरी मृत्यु आपकी मृत्यु से ठीक दो घण्टे पहले होगी। कहने का मतलब ये है कि मेरे मरने के ठीक दो घण्टे बाद आपकी मृत्यु हो जाएगी।
राज ज्योतिषी का जवाब सुनकर राजा भी चक्कर में आ गया और जो उसने मन में सोचा था उस बात को वहीं पी गया। इधर राज ज्योतिषी ने भी सोचा कि एक बार तो जैसे तैसे जान बच गई मगर आगे का कुछ पता नहीं है। कुछ दिन रहने के पश्चात उसने महाराज से आज्ञा ली और वन की ओर प्रस्थान कर दिया।
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