बापू उसे मत फैंकना तुम्हारे काम आएगा
विजय विक्रान्तसरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद किरपालू और उसकी बीवी धन्नो ने सोचा कि रामपुर में जाकर बसा जाय। रामपुर में ही उसका इकलौता बेटा मुरली अपने इकलौते बेटे गप्पू और पत्नी दुलारी के साथ रहता था। वहाँ जाकर किरपालू ने अपना मकान बनवाया और मुरली को जो किराए के मकान में रहता था अपने साथ रहने को कहा। सब कुछ ठीक चल रहा था। अचानक एक दुर्घटना में धन्नो की मृत्यु हो गई। धन्नो के मर जाने के बाद किरपालू तो एकदम गुमसुम हो गया। उसके ग़म में वो स्वयं बीमार पड़ गया।
बाप की यह हालत देख कर मुरली ने उसकी खूब सेवा करनी शुरु कर दी और हर प्रकार से देखभाल की। पिता ने भी देखा कि बेटा कितना ख्याल कर रहा है। किरपालू ने एक दिन मुरली को अपने पास बुलाया और अपनी सारी जायदाद उसके नाम करदी। सब कुछ मिल जाने के बाद अब मुरली के बरताव में परिवर्तन आना शुरु हो गय। वो बाप की अवहेलना करने लगा और दुलारी से भी कह दिया कि बापू जब भी कुछ मागें उसको मत देना।
किरपालू की हालत दिन प्रति दिन बिगड़ती चली गई। एक ओर स्वास्थ्य खराब रहने लग और दूसरी ओर मुरली ने उसके लिए घर से बाहर टूटी हुई खाट डाल दी और ओढ़ने के लिए उस पर एक टाट बिछा दिया। किरपालू अब अपने दिन वहीं पर काटने लगा। दुलारी का व्यवहार तो मुरली से भी खराब था। वो तो बात बात पर गाली पर उतर आती थी। गप्पू यह सब देख रहा था ओर उसको कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
आख़िर एक दिन किरपालू की मृत्यु हो गई। बाप के मरने पर दुनिया को दिखाने के लिये मुरली बहुत रो रहा था। दुलारी के तो आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। यह सब देख कर गप्पू एक अजीब उलझन में पड़ गया।
दाह संस्कार करने के बाद मुरली घर लौटा। जब अड़ौसी पड़ौसी चले गए तो दुलारी से अकेले में बात कर के बाहर आया और खाट और टाट को उठाने लगा। गप्पू के पूछने पर कि वो उन चीज़ों का क्या करेगा तो मुरली बोला कि वो उसको बाहर फैंक देगा।
इतना सुनना था कि गप्पू एकदम बोल उठा।
"पिताजी उस खाट और टाट को संभल कर रख लीजिएगा। उसे मत फैंकना क्योंकि जब आप बूढ़े होंगे तो यह सब आपके काम आएँगे।"
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