आख़िर कब तक सच को छुपाओगे
विजय विक्रान्तटोरोंटो में ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ का शनिवार १२ मार्च, २०२२ को यॉर्क सिनेमा में प्रीमियर हुआ और हम दोनों को पहला शो देखने का अवसर प्राप्त हुआ। मूवी का पोस्टर देखकर, मूवी में क्या होगा, इस बात का कुछ अन्दाज़ा तो लगाया जा सकता था, लेकिन पूरी मूवी देखने के बाद जो प्रतिक्रिया हुई वो कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे।
इस फ़िल्म में पर्दे पर सन् १९९० में घटी बत्तीस साल पुरानी उन घटनाओं को दर्शाया गया था जब अपने ही कश्मीरी पण्डित भाइयों, बहनों और बच्चों को, अपने ही देश भारत में, अपने ही नगर श्रीनगर के घर से, अपने ही मुसलमान पड़ोसी और तथाकथित अपने ही मुसलमान मित्रों द्वारा रातों-रात पलायन करने पर मजबूर कर दिया गया था। आतंकवादियों ने किस क्रूरता और बेरहमी से इन कश्मीरी भाइयों को, परिवार सहित, रातों रात श्रीनगर छोड़ कर जम्मू में शरण लेने पर मजबूर कर दिया था। क़त्लेआम, बलात्कार और बरबरता की सच्ची घटनाओं के जो दृश्य प्रोड्यूसर अग्निहोत्री ने दिखाये हैं, उन्हें देख कर, हाल में बैठी हुई, शायद ही कोई ऐसी आँख होगी जिसमें से आँसू न बह रहे हों। खुलेआम पुरुषों , स्त्रियों और बच्चों को गोली का शिकार बनाया गया जिसे देख कर रूह काँपती है। यह कोई काल्पनिक फ़िल्म नहीं है बल्कि हक़ीक़त है। पर्दे पर यह सब देखकर जब हॉल में बैठे दर्शक अपने आँसू नहीं रोक सके तो ज़रा सोचिये, उन मासूम पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों पर क्या बीत रही होगी जिन्हें गोली का शिकार बनाया गया।
जे.के.एल.एफ़. की इस क्रूरता के दो बड़े स्तम्भ यासीन मलिक और बिट्टा कराटे दिल्ली की तिहाड़ जेल में बन्द हैं। खुलेआम इन दोनों ने बड़े फ़ख़्र के साथ कश्मीरी पण्डितों को गोली से मारने की शेख़ी बघारी है। आशा है इन दोनों को अपनी करनी का फल मिलेगा।
पहले तो यह पलायन होना ही नहीं चाहिये था। इस घटना को रोकने के लिये कश्मीर में उस समय की फ़ारूख़ अब्दुल्लाह सरकार की और दिल्ली में राजीव गाँधी सरकार की ज़िम्मेवारी थी, लेकिन फ़ारूख़ अबदुल्लाह और राजीव गाँधी की सरकारों ने इस पलायन को न केवल अनदेखा किया बल्कि उन्होंने व उनके बाद आई विभिन्न सरकारों ने इसे देश से बत्तीस साल तक छुपाये रक्खा। अब जब बात खुलकर सामने आ गई है तो इन दोनों परिवारों के लोग इस फ़िल्म को नकार रहे हैं। इस मूवी में जो इन नेताओं के असली चेहरे देखने को मिल रहे हैं, उसका श्रेय विवेक अग्निहोत्री को जाता है। ऐसी मूवी बनाने के लिये बहुत बड़ा जिगर, बहुत बड़ी हिम्मत और सच्ची लग्न चाहिये और यह जिगर, हिम्मत और लग्न विवेक अग्निहोत्री और उसकी टीम ने बख़ूबी दिखाई है।
आख़िर क्या क़ुसूर था इन बेचारों कश्मीरी पण्डितों का? कौन है इसका ज़िम्मेवार? अपने संस्मरण ‘माई फ़्रोज़न टर्बुलेंस इन कश्मीर’ (My Frozen Turbulance in Kashmir) के तीसरे अध्याय ‘वार्निंग सिग्नल्स’ (Warning Signals) में उस समय के कश्मीर के राज्यपाल श्री जगमोहन ने लिखा है कि "१९८८ के शुरू से ही मैंने भारतीय केन्द्रीय सरकार को आने वाले तूफ़ान के बारे में चेतावनी संकेत भेजने शुरू कर दिये थे। किन्तु वहाँ पर बैठे उच्च अधिकारीओं के पास न तो ध्यान देने की इच्छा थी और न ही उनके पास समय था।" जगमोहन जी की अगस्त १९८८ के डायरी के पन्ने की रिपोर्ट जो उन्होंने उस समय के राष्ट्रपति, प्रधान मन्त्री तथा गृह मन्त्री को भेजी थी उसके कुछ अंश:
कश्मीरी युवाओं का पाकिस्तान के विध्वंसक (subversive) ग्रुप से निष्ठा (allegiance), वहाँ जाकर ट्रेनिंग लेना और यहाँ आकर पंजाब जैसी आतंकवादी लहर चलाना।
३१ जुलाई और ३अगस्त को दो बम्ब धमाके और एक डकैती।
१४ अगस्त को श्रीनगर और ख़ाड़ी में पाकिस्तान का झण्डा फहराना, १५ अगस्त को, कई स्थानों पर काले झण्डे फहराना। २३ अगस्त को शिया और सुन्नियों में हिंसक टकराव। ‘
जगमोहन जी का मानना था कि बहुत से भारत विरोधी फ़सादों के लिये कश्मीर की मौजूदा सरकार धर्म की आड़ में लोगों को भारत के विरुद्ध और पाकिस्तान के हक़ में भड़का रही है।
यह मानी हुई बात है कि इतिहास कभी भी किसी को क्षमा नहीं करता। जगमोहन जी ने अपने तीसरे अध्याय के शुरू में एक ऐसा सच उद्धृत किया है, जो नकारा नहीं जा सकता।
“History is no blind goddess,
and it does not excuse blindness in others”
"इतिहास की देवी अंधी नहीं है, और दूसरों के अंधेपन को क्षमा भी नहीं करती"।
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