पानी माँगे एटम बम
अजय अमिताभ 'सुमन'क्या जाति है क्या धर्म है,
क्या रूप है क्या है रंग,
कृष्ण यीशु में ना कोई अंतर,
कोरोना से सबकी जंग।
डरे सारे कोरोना से कि,
चेहरे पे भी लगा नक़ाब,
रोड साफ़ है हवा पाक पर,
घूमना हुआ नापाक।
चलना फिरना नापाक कि,
ईश्वर की है ऐसी तैसी,
ख़ुदा गॉड भी ग़ायब-शायब,
कोरोना की महिमा ऐसी।
ज्योतिष-प्योतिष, मुल्ला-टूल्ला,
कुछ भी नहीं क़ुबूल,
दवा, दारू, जादू, टोना, मंतर,
दुआ हुई फजूल।
कोरोना की महिमा चंद,
पानी माँगे एटम बम,
गुरुद्वारा व मस्जिद बन्द,
चर्च बन्द है टेम्पल बन्द।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- आख़िर कब तक आओगे?
- ईक्षण
- एकलव्य
- किरदार
- कैसे कोई जान रहा?
- क्या हूँ मैं?
- क्यों नर ऐसे होते हैं?
- चाणक्य जभी पूजित होंगे
- चिंगारी से जला नहीं जो
- चीर हरण
- जग में है संन्यास वहीं
- जुगनू जुगनू मिला मिलाकर बरगद पे चमकाता कौन
- देख अब सरकार में
- पौधों में रख आता कौन?
- बेईमानों के नमक का, क़र्ज़ा बहुत था भारी
- मन इच्छुक होता वनवासी
- मरघट वासी
- मानव स्वभाव
- मार्ग एक ही सही नहीं है
- मुझको हिंदुस्तान दिखता है
- मृत शेष
- रावण रण में फिर क्या होगा
- राष्ट्र का नेता कैसा हो?
- राह प्रभु की
- लकड़बग्घे
- शांति की आवाज़
- शोहरत की दौड़ में
- संबोधि के क्षण
- हौले कविता मैं गढ़ता हूँ
- क़लमकार को दुर्योधन में पाप नज़र ही आयेंगे
- फ़ुटपाथ पर रहने वाला
- कहानी
- सांस्कृतिक कथा
- सामाजिक आलेख
- सांस्कृतिक आलेख
- हास्य-व्यंग्य कविता
- नज़्म
- किशोर साहित्य कहानी
- कथा साहित्य
- विडियो
-
- ऑडियो
-