मैं तो केवल इस फ़िज़ां में
निर्मल सिद्धूहर किसी की धड़कनों में
बज रहा इक साज़ हूँ
जो समझ ना आ सके
कुछ मैं वही तो राज़ हूँ।
कोई मुझको झूठ बोले
कोई कहता सच मुझे
मैं तो केवल इस फ़िज़ां
में तैरती आवाज़ हूँ।
वो जो मौसम की नज़र
से डर रहा था हर घड़ी
मैं उसी बेबस परिन्दे
की नई परवाज़ हूँ।
सब भले कल भूल जायें
गुज़री कहानी जान कर
मैं नये क़िरदार में आ
फिर नया आग़ाज़ हूँ।
मैं मुहब्बत के फ़रिश्तों
की इबादत में लगा
ना किसी से है अदावत
ना कोई हमराज़ हूँ।
मैं यहाँ हूँ, मैं अभी हूँ,
तुमने देखा ही नहीं
इसलिये तो तुझसे
‘निर्मल’ मैं बड़ा नाराज़ हूँ।