शहर में दंगा हुआ है

15-11-2020

शहर में दंगा हुआ है

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

 प्रथम पन्ने पर छपा  है,
आज के अख़बार में यह,
शान्ति है चारों तरफ़, पर 
शहर में दंगा हुआ है।
 
मूल्यहीन समाज  है यह,
अति भयानक,
हवा बिगड़ी है शहर की,
बस अचानक,
शोर यह हर ओर से है,   
आदमी नंगा हुआ है।
 
शांति का झंडा उठाए,
सड़क चलती,
कह रहे हैं लोग, लेकिन 
रोज़ छलती,
बात है कुछ भी नहीं, बिन    
बात का पंगा हुआ है?
 
आदमी से आदमी अब,
डर रहा है,
एक भय वह, सँच हृदय में,
धर रहा है,
भावनाओं का हिमालय,
क्रोध से रंगा हुआ है।
 
आज हर उन्माद का मन,
सिरफिरा है,
सोच-स्तर आदमीयत
का गिरा है,
रक्त जो यह बह रहा है,
ज़हर की गंगा हुआ है।

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