संबोधन पद!
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’शब्दों को संबोधित करता
है, संबोधन पद!
वह समूह है,
है समूह से दूर,
चन्द्रप्रभा है,
चंदा है वह, पूर,
स्वयंसिद्ध! निर्धारित करता
है वह अपना, क़द!
वह लकीर है,
अमल अलौकिक चिह्न,
वह विराम है,
किन्तु न डाला, विघ्न,
एक नाम है, है अनाम वह,
है वह बहता नद!
सजग जाग है
और आग है, धर्म,
वह वाणी है,
वीणा है वह, कर्म,
सब कुछ, लेकिन
कहीं न पाला, मद!
चुना हुआ है,
कुशल प्रबन्धक, श्रेय,
सार्थ विजेता,
है पुकार वह, प्रेय,
सरल सुचितई,
निपुण तत्व है, सद!
1 टिप्पणियाँ
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मेरे नवगीतों को साहित्य कुञ्ज में स्थान देने के लिए संपादक मंडल का आभार | साहित्य कुञ्ज की पठनीय सामग्री चेतनता प्रदान करने में सक्षमता रखती है | बधाई |
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