मेरी कविता
निर्मल सिद्धूसुरजीत पात्र
मूल भाषा - पंजाबी, अनुवाद - निर्मल सिद्धू
मेरी माँ को मेरी कविता समझ न आई
भले मेरी माँ-बोली में लिखी हुई थी
वह तो केवल इतना समझी
पुत्र की रूह को दुख है कोई
पर इसका दुख मेरे होते
आया कहाँ से
ध्यान लगाकर देखी
मेरी अनपढ़ माँ ने मेरी कविता
देखो लोगो
कोख से जन्मे
माँ को छोड़कर
दुख कागज़ों को हैं बतलाते
मेरी माँ ने कागज़ उठा सीने से लगाया
क्या पता इस तरह ही
कुछ मेरे क़रीब हो जाये
मेरा जाया!