कपड़े धोने की मशीन
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’धूप खिली, पटरी पर आए,
बंद पड़े सब काम।
मौसम की हल्की वर्षा से,
ऊभ-चूभ हैं गेह,
देह पसीने में डूबी है,
छूट गए हैं स्नेह,
लद लद करके नीचे टपके,
पके डाल पर आम।
लगीं प्रभाती गाने सुबहें,
कलरव गूँजे रोज,
छत पर थे जो खाते-पीते,
अंदर लौटे भोज,
भरती है सिंदूर माँग में,
स्वयं सुनहरी शाम।
कपड़े धोने की मशीन से,
कपड़े आए लौट,
जली अँगीठी और हाँड़ियाँ ,
दूध रही हैं औट,
भीड़ भरी सड़कों पर उमड़े,
चौराहों के जाम।
सुघर पत्थरों पर सोए हैं,
रामराज्य के चित्र,
निर्माणों की हर मुद्रा में,
एक सुगंधित इत्र,
वाद विवाद जीतकर आए,
पुन: अयोध्या राम।
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