जैसी तुम्हारी इच्छा
विजय विक्रान्तमोहिनी को कौन नहीं जानता था। जैसा उसका नाम, वैसे ही उसके करम। मोहिनी अपनी बातों से सदा सबका मन मोह लेती थी। हर किसी के दुख: सुख में सब का साथ देती थी। औरों को ख़ुश करने की ख़ातिर वो अपने दुख: को भूल जाती थी। पार्टियाँ करने का उसे बहुत शौक था। उसका घर सदा लोगों से भरा रहता था। जब भी देखो, धूम धड़क्का, धूम धड़क्का। आस पास के लोग भी उसकी इस आदत से परिचित थे और सदा उसका साथ देते थे। समय बीतता गया और पार्टियाँ यूँ ही चलती रहीं। समय के साथ साथ मोहिनी का शरीर भी कमज़ोर होता जा रहा था, परन्तु उसकी पार्टियों में कोई परिवर्तन नहीं आया। हँसी ख़ुशी का माहौल ऐसे ही बना रहा।
आख़िर मोहिनी के जाने का समय आ गया। यमराज ने अपने दूत को धरती पर ये आदेश देकर भेजा कि वो अपने साथ मोहिनी को ले आये। आज्ञा पाकर दूत धरती पर आया जहाँ उसने देखा कि मोहिनी अपनी पार्टी में व्यस्त है। उसे दीन और दुनिया की कोई ख़बर नहीं। उसे देख कर यमदूत की इतनी हिम्मत नहीं पड़ी कि वो बिना बताए मोहिनी को ले जाए। दूत ने मनुष्य का वेश धारण किया और स्वयं भी पार्टी में शामिल हो गया।
थोड़ी देर बाद जब मौक़ा मिला तो दूत ने मोहिनी को एकांत में ले जाकर अपने आने का कारण बताया। दूत ने मोहिनी को ये भी बताया कि आज उसको एक सौ लोगों को अपने साथ ले जाना है। उसके पास जो सौ लोगों की लिस्ट है उस में मोहिनी का नाम सब से पहला है। यह सुनकर मोहिनी ने दूत से कहा कि हे महात्मा मेरी इस पार्टी में क्यों भंग डाल रहे हो। देख नहीं रहे हो कि लोग कितने मगन हैं। मुझे तुम्हारे साथ जाने में कोई आपत्ति नहीं है, बस थोड़ा सा समय और देदो। और हाँ, अगर ले ही जाना है तो अपनी लिस्ट को नीचे से शुरू क्यों नहीं कर लेते। इस तरह से मेरा नम्बर सब से बाद आएगा और अपने लोगों का साथ थोड़ी देर के लिये और मिल जाएगा। यमदूत के कहने पर कि ऐसा संभव नहीं है, मोहिनी ने उस से कहा कि क्यों न वो भी कुछ देर पार्टी का आनन्द ले ले। दूत ने मोहिनी के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और अपनी लिस्ट एक ओर रखकर पर्टी का आनन्द लेने लगा।
मोहिनी इस दुनिया से इतनी जल्दी जाना नहीं चाहती थी। उसे ये भी पता था कि यमदूत उसे छोड़ेगा भी नहीं। एकाएक उस के मन में विचार आया और उसने आँख बचाकर यमदूत की लिस्ट में अपने नाम का कार्ड सब से नीचे कर दिया। सब काम यूँ ही चलता रहा। थोड़ी देर बाद यमदूत को ध्यान आया और वो मोहिनी के पास आकर कहने लगा कि उसने मोहिनी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है और सब से नीचे जिस का नाम है उसे वो सब से पहले ले जाएगा। यह सुनकर मोहिनी ने केवल इतना कहा और चलने को तैयार हो गई।
टाल नहीं सकता कोई, लिखा जो है सो होए
कितने जतन कुछ भी करो, जो होना है सो होए
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ऐतिहासिक
- सिनेमा चर्चा
- स्मृति लेख
- सांस्कृतिक कथा
-
- छोटा नहीं है कोई
- कन्हैया की हाज़िर जवाबी
- जैसी तुम्हारी इच्छा
- डायरी का एक पन्ना – 001: टैक्सी ड्राईवर का एक दिन
- डायरी का एक पन्ना – 002: सर्कस का क्लाउन
- डायरी का एक पन्ना – 003: यमराज
- डायरी का पन्ना – 004: जौगर
- डायरी का पन्ना – 005: मिलावटी घी बेचने वाला
- डायरी का पन्ना – 006: पुलिस कॉन्स्टेबल
- डायरी का पन्ना – 007 : दुखी पति
- डायरी का पन्ना – 008 : मैडिकल डॉक्टर
- डायरी का पन्ना – 009 : जेबकतरा
- डायरी का पन्ना – 010 : रिमोट
- ललित निबन्ध
- कविता
- किशोर साहित्य कहानी
- लोक कथा
- आप-बीती
- विडियो
-
- ऑडियो
-