जाने किन बातों की
निर्मल सिद्धूजाने किन बातों की
ख़ुदा मुझको सज़ा देता है
जो भी मिलता है नया,
नया दर्द जगा देता है
दिल में उठती हुई लपटों
को है बुझाना मुश्किल
जो भी देता है, वो
शोलों को हवा देता है
उस ज़माने का कोई
ऐतबार भला कैसे करे
जिसके हर शख़्स को,
हर शख़्स दग़ा देता है
दुश्मने दिल को समझना,
इतना आसाँ भी नहीं
ज़ात अपनी को, वो
सौ पर्दों में छुपा देता है
लड़ना बाहर से तो
मुमकिन है क्या करें मगर,
घर के अंदर से कोई,
अंदर का पता देता है
जितना जी चाहे तेरा,
कर ले तू ‘निर्मल’ पे सितम
चाहे कुछ भी हो जाये,
दिल है कि दुआ देता है