हाँ! वह लड़की!!  

15-11-2020

हाँ! वह लड़की!!  

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

पानी की दो भरी बाल्टियाँ,
लेकर हाथों में,
हाँ! वह लड़की!!
अपनी एक कहानी ढोती है।
 
दायित्वों से लदी पड़ी है,
सपने पाले हैं,
चिंताओं के बोझ बाँधकर,
छत पर डाले हैं,
सब पुरखों  के असहज दुख को,
सिर पर रखकर ,
हाँ! वह लड़की!!
पीड़ा एक पुरानी ढोती है।
 
जिस ज़मीन पर उसका हक़ है,
काटे उसे नदी,
वर्तमान तो हँस-हँस देखा,
मौनी रही सदी,
सदा ग़रीबी में ही जीती,
लिए सफलता,
हाँ! वह लड़की!!
धारा नई, रवानी ढोती है।
 
सात साल से अधिक नहीं है,
जिसकी देह अभी,
पर जीवन के उठा-पटक के,
गाए गीत सभी,
बचपन के दिन हैं, फिर भी वह
हार न माने,
हाँ! वह लड़की!!
छोटी किंतु जवानी ढोती है।
 
आसपास घर-गाँव नहीं हैं,
केवल टीले हैं,
लगता है उस पार क्षितिज के,
बसे क़बीले हैं,
‘पानी ही है प्राण’ इसलिए,
एक प्रेरणा,
हाँ! वह लड़की!!
पानी बनी भवानी ढोती है। 

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