बादलों के बीच सूरज

15-05-2020

बादलों के बीच सूरज

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ (अंक: 156, मई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

बादलों के बीच सूरज
घिर गया है।

 

हँस रहा है मुग्ध मानस,
झील का ऊँचा किनारा,
ढूँढ़ता नीले गगन के,
किरणमय सारे दियारा,


धूप का झुमका चमाचम
गिर गया है।

 
पर्वतों की चोटियों पर,
है अँधेरा कुछ घना सा,
किरण का जाना वहाँ, है
हो गया बिलकुल मना सा,


व्यंग्य वाणों से कलेजा
चिर गया है।
 

किस परी के देश में वह,
समय का घोड़ा गया है,
एक भी चिड़िया नहीं है,
उड़ कहीं उलझा बया है,


लहर लहराती नहीं, मल
थिर गया है।
 

पर्यटन के गाँव में है,
एक छतरी का बसेरा,
कुशलतापूर्वक जगा है,
साँझ से सोया सबेरा,


कमल ललछौंहाँ खिला, दिन  
फिर गया है। 

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