छिपती ना भीतर की पीड़ा
आँसू चुगली खोर
झट कोरों पे आन बैठते
मौन मचाएँ शोर
बड़े सहोदर मन भावों के
पकड़े रखते डोर
व्यथा हृदय की लाख छिपाऊँ
पकड़ा देते छोर
हर दुख-सुख में पिघल पड़ें
दिल के हैं कमज़ोर
जन्म के पहले पल के साथी
नयन गाँव ही ठौर
दुख संताप सहें स्वजनों का
बैठ आँख की कोर
अंतरमन के घावों पे, करते
चुपचाप टकोर
यूँ तो जीवन यात्रा में मिले
मित्र कई बेजोड़
दिल पे पक्की यारी की बस
यही लगाएँ मोहर।
अंत समय तक साथ ना छोड़ें
इन सा मित्र ना और।

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