विविध हाइकु – पुष्पा मेहरा – 002
पुष्पा मेहरा1.
लाई सुनामी
मुरादों से आई
पहली वर्षा।
2.
पढ़ी जो पाती
बादलों ने वर्षा की
भीगी धरती।
3.
भिड़े बादल
फूटे जल मटके
नहाई धरा।
4.
भिड़े बादल
थर्रा उठी बिजली
बरसे आँसू।
5.
लौटे जो जेठ
सूरज से मिल के
जली माँ धरा।
6.
विंड चाइम
किलकारी बच्चों की
भेदे सन्नाटा।
7.
पहली वर्षा
धूल भरी पोशाक
धो रहे वृक्ष।
8.
वर्षा धोबन
आ धो गई पेड़ों के
धूसर वस्त्र।
9.
आया भूचाल
हरहराई धरा
काँपे भूधर।
10.
वक़्त की चाल
सच के सिर काँटे
झूठ को ताज।
11.
लौ विश्वास
जैसे ही तेज़ करी
अँधेरा छँटा।
12.
जल थी नदी
आत्मवत सिन्धु में
लीन हो गई।
13.
कच्ची थी नींव
झेल न सकी तूफ़ाँ
पल में ढही।
14.
पढ़ते रहे
नशा मुक्ति स्लोगन
नशे में लोग।
15.
उतार वस्त्र
दिगम्बर हो खड़े
साधक वृक्ष।
16.
साधिका धरा
अनासक्त हो पड़ी
धूल में सनी।
17.
भड़क उठी
जेठ का ताव देख
जंगली हवा।
18.
जीभ की आरी
काट गई रिश्तों के
समूल वन।
19.
सिर न पैर
बन गई दावाग्नि
थोड़ी सी गल्प।
20.
मन-आकाश
अन्तर्द्वन्द्व से घिरा
रुका प्रकाश।
21.
श्वास–प्रश्वास
सात चक्रों की ऊर्जा
जीवन तत्व।
22.
तन की वीणा
साँसों के तारों पर
हुई मुखर।
23.
मन परिंदा
टूटी–फूटी डाल का
मोह ना छोड़े।
24.
थका सूरज
आम की फुनगी पे
निढाल पड़ा।
25.
झिरी–झिरी से
आने को अकुलाती
रोशन झड़ी।
26.
भड़क उठी
जेठ का ताव देख
जंगली हवा।
27.
रात की रानी
हवाओं में बाँटती
प्रेम अनंत।
28.
थकी सी धूप
पहाड़ की गोद में
निढाल पड़ी।
29.
कीचड़ काँधो
देती वर्षा सौग़ात
माटी को जान।
30.
बीज में भ्रूण
देख करे श्रावणी
बेबी शॉवर।