बसंत (पुष्पा मेहरा)
पुष्पा मेहराउतरी ओढ़नी धुँध की
निखरा रूप धरा का
डाल-डाल पर खिल गईं कलियाँ
नव जीवन मुस्काया,
रंग मन में भर आया।
फूल–फूल पर किरण नाचती
हवा सुखद मनभावन बहती
राग-रंग से भर कर उड़ती
रंगीं पाखों की टोली,
प्रेम-रंग में भीगी छतरी
गुलमोहर ने तानी,
रोम–रोम हरषाया
सखि! बसंत आया।
अमलतास ने माँगी हल्दी
पीताम्बर रंग लाया
लो बसंत आया।
बूट–बाल की झाँझ बज उठी
खेतों ने भी झूम-मल्हार गाया,
तान मदिर भौरों ने छेड़ी
अम्बर भी मुस्काया
मन झूम–झूम हरषाया
लो! अनंगआया।
हवा रच रही छंद मधुर
मन धरती का डोला
फूले पलाश की चितवन से
नशा निराला छाया
काम ने मन में राग भर दिया
मन विरही-दहकाया
सखि! बसंत आया।
आमों की डालों पर
सजे देख बौरों के झूमर
कोकिल विरही कूका,
पा सुगंध भरा झोंका
पात–पात बौराया
देख के, मन हरषाया
सखि! बसंत आया।
शीत के आँसू पोंछ बसंत
प्रीति की रीति निभाता
फ़गुआ गाता, विरहा गाता
रंगों के डोल बहाता
प्रकृति-नूर रंग लाया
देखो फिर बसंत आया।
1 टिप्पणियाँ
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सम्माननीय घई जी मेरी कविता बसंत को अपनी पत्रिका में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार पुष्पा मेहरा