रक्षाबन्धन से सम्बन्धित दोहे
पुष्पा मेहरा१.
बूँदें बन बरसा जलद, मिटा धरा का ताप।
औषधि भरी वाणी मधुर, हरती मन संताप॥
२.
रिश्ते तो रिश्ते रहें, पत्थर पड़ी लकीर।
तोड़े से मिटते नहीं, बाँचें निज तक़दीर॥
३.
सूनी-सूनी हाट है, दबे-दबे हैं पाँव।
भरी दुपहरी प्यार की, ढूँढ़ रहे हैं छाँव॥
४.
बंधन राखी का सुखद, भैया वट की छाँव।
अला बला पनपे नहीं, कभी बहन के ठाँव॥
५.
कहने को कच्चा निरा, पर धागा अनमोल।
धन से ये तुलता नहीं, प्रेम राशि से तोल॥
६.
रिश्ता पावन प्यार का, बँधा रेशमी डोर।
बहना मन भैया बसा, ज्यों अरुणारी भोर॥