देवी की प्रतिमा
पुष्पा मेहरामाँ! तुम सागर
मैं लहर तुम्हारी
तुम सीपी
मैं उसकी मोती
तुम कुम्हार
मैं काची माटी
गढ़-गढ़ जिसे
तुम सुगढ़ बनातीं
सह कर कष्ट
तुम मुझे पालतीं,
तुम दीपक
मैं अंध कूप सी
बाती सी तुम
तिल-तिल जलतीं
जल कर देतीं
संस्कार रोशनी,
धैर्य वृक्ष के
पारिजात पर
लिपटी तुम
सद्गुण-लतिका सी।
जहाँ-कहीं तुम
पत्थर होतीं
कहीं तुम होती
फूल सी कोमल,
जग की सृष्टा
तुम लक्ष्मी, दुर्गा-काली
तुम्हीं सरस्वती, तुम
शिव की शिवा,
अन्नपूर्णा तुम धर्म धारिणी
पुजती बन
देवी की प्रतिमा।