सोलह राजनीतिक क्षणिकाएँ
रितेश इंद्राश
1.
जात-पाँत का खेल मचा है सियासत में
ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, शूद्र कौन बचा है सियासत में
चंद्र लोगों ने हिफ़ाज़त का ठेका ले रखा है
सबको आपस में लड़ा के मौक़ा ले रखा है।
2.
जाति के नाम लोगों को लड़ाया जा रहा है
कुर्सी बचाने के लिए झूठ फैलाया जा रहा है
चुनाव है ग़रीब को अमीर बनाया जा रहा है
अरे मूर्खों हमें फिर से मूर्ख बनाया जा रहा है।
3.
बिजली, पानी, राशन पर पटाया जा रहा है
चुनाव है इसलिए अपनापन जताया जा रहा है
यह कोई शुभचिंतक नहीं है इन्हें कुर्सी चाहिए
आज सत्तर सालों से ग़रीबी को हटाया जा रहा है।
4.
विकलांगों को और विकलांग बनाया जा रहा है
ग़रीबों को फ़्री का राशन खिलाया जा रहा है
अब खेती-बाड़ी छोड़कर लोग घूम रहे हैं सड़कों पर
किसानों के देश में विदेश से राशन मँगाया जा रहा है।
5.
पत्रकारों को लिखने की सज़ा दी जा रही है
कवियों को बोलने की सज़ा दी जा रही है
मेरा हुक्मरान इतना कमज़ोर कैसे हो सकता है
लिखने और बोलने पर पाबंदियाँ लगाई जा रही हैं।
6.
बमों की बारिश हो रही है इंसानियत पर
सभ्य लोग असभ्य होते जा रहे हैं
अपनी ज़िद और धौंस को क़ायम रखने के लिए
युद्ध पर युद्ध करते जा रहे हैं।
7.
उसने देश का माहौल ख़राब कर रखा है
ज़रूरतों पर बेहिसाब कर लगा रखा है
बिजली पानी फ़्री देकर मूर्ख समझता है
मज़दूरों, ग़रीबों को वोट बैंक बना रखा है।
8.
मेरा हुक्मरान ज़ालिम हो गया है
चैन की नींद भी सोने नहीं देता
रात में उठ कर घोषणा करता है
ग़रीब को अमीर होने नहीं देता।
9.
घर पर फूस ना था ख़ुद को समुंद्र समझता था
मज़लूम को मार कर ख़ुद को सिकंदर समझता था
न जाने किस तूफ़ां में उसकी कश्तियाँ उजड़ गईं
एक दरिया जो अपने आप को समुद्र कहता था।
10.
इंसानों का इंसानों से युद्ध छिड़ गया है
तोप, बारूद, गोला, बंदूक उठ गया है
इस जंग में शिकस्त इंसान का ही होगी
क्योंकि इंसान ही इंसान का दुश्मन बन गया है।
11.
युद्ध देश के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता
ज़मीं यही रहती है पर इंसान ज़िन्दा नहीं होता
हज़ारों, करोड़ों भूख से मर रहे हैं देश में
जंग लड़ने से जंग का कभी ख़ात्मा नहीं होता।
12.
दुनियाँ में जंग छिड़ गई है उसे टालो यारों
इंसान दोनों तरफ़ है किसे मारोगे यारों
जंग में बारूदें बेगुनाही नहीं देखती
जंग को रोक कर दुनिया बचा लो यारों।
13.
बिखरे-बिखरे से मेरे सरकार नज़र आते हैं
मझधार में है मगर उस पर नज़र आते हैं
अब नईया कब तक खेयेगा मल्हार इनका
कभी इस पार तो कभी उस पार नज़र आते हैं।
14.
राजनीति में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता
अनुभव होकर भी अनुभवी नहीं होता
एक वोट सरकार गिराने के लिए काफ़ी है
राजनीति में हर कोई अटल नहीं होता।
15.
क्या लिखें बिना लिखे रहा नहीं जाता
सियासतदानों का कुकर्म सहा नहीं जाता
संसद लिखूँ या विधानसभा लिख दूँ
ग़रीबों की रिहाई लिखूँ या सजा लिख दूँ।
16.
खाने पीने पर भी पाबंदी लगायी जा रही है
अब तो रोटी पर भी टैक्स लगाया जा रहा है
मेरा हुक्मरान ख़ुद को मसीहा कहता है ग़रीबों का
झूठ बोलकर ग़रीबों का मज़ाक़ बनाया जा रहा है।