मैं हूँ अभागा सा

15-09-2024

मैं हूँ अभागा सा

रितेश इंद्राश (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

एक मैं हूँ अभागा सा 
जिसका कोई घर बार नहीं 
 
अपना ना कोई दूर तलक 
ज़िन्दा हूँ रहकर खुली सड़क 
 
भूख मुझे तड़पाती है 
तब काया हाथ फैलाती है 
 
ज़िन्दा हूँ मगर मरा हुआ 
लोगों के नज़रों में गिरा हुआ 
 
दिखता तो थोड़ा स्वस्थ हूँ मगर 
अंदर से बिल्कुल सड़ा हुआ 
 
ना कोई हाथ बढ़ाता है 
ना कोई राह दिखाता है 
 
मुझ जैसों का घर बार नहीं 
बस खुली सड़क संसार यही 
 
गाली से नवाज़े जाते हैं 
डंडों से मार हम खाते हैं 
 
पंछी भी हमसे अच्छे हैं 
पानी तो प्यार से पाते हैं। 

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